शिकायतें बेहतर है, नफरत से !


अक्सर सुनता हूँ की प्यार ख़तम होने के बाद 

दो प्यार करने वाले एक दूसरे से नफरत करने  लगते है !

क्यों ?

और नफरत कैसे हो सकती है?

उस इंसान से जिसे तुमने अपने लिए चुना 

और उसके साथ पूरी ज़िन्दगी न सही 

पर कुछ वक़्त-कुछ पल तो बिताया हे ना तुमने !

तो क्या वो वक़्त  खूबसूरत नहीं था?

इतना कमज़ोर होता है क्या प्यार की 

किसी एक के चले जाने से नफरत का अंगार दूसरे 

के मन में भर जाता है। 

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" किसी रिश्ते का अंत नफरत कभी नहीं हो सकती "

हमें शिकायतें रह जाती है 

और उसमे कोई दोहराई नहीं की 

वो इंसान अगर हकदार है तो सिर्फ शिकायतों 

और अनगिनत ऐसे सवालों का जिसके जवाब 

उससे पूछे जाएंगे तो वो हर जवाब में या तो 

सर झुका लेगा या उसका लहजा हर बात में बदल जाएगा। 

खैर, नफरत कभी किसी के हिस्से नहीं आनी चाहिए ,

उसके भी नहीं।

शायद ज़िन्दगी तुम्हें दोबारा मौका दे 

उससे मिलने का , तो क्या तुम 

ये नफरत लेकर मिलोगे उससे , नहीं ना !

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अगर शिकायतें होंगी भी तो शायद मिट भी जाए 

उससे मिलकर, उससे बात करके ,

पर नफ़रतें नहीं मिटती ,

नफरत सिर्फ लम्हें ज़ाया करती है। 

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