Women's Day



होगा कंधा कमज़ोर किसी का
तू मज़बूती ना आज़मा,
औरत का होकर, औरत पे हुकूमत न चला
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चंचल दिखती है,स्वभाव से
सूरज के जैसा तेज भी उसमे
तू जिस मिट्टी से जना है,
उसमे तो पूरी पृथ्वी समायी है,
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हौसला तोड़ने पे बैठी है दुनिया,
फिर भी निडर खड़ी है,
वो सीधी लकीर जितना , सीधा जीवन बिताती है,
पता नही क्यों वो हर कीसी को टेड़ी नज़र आती है,
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(सुनो लडक़ी हुई है)
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सुनके शब्द ये , सज्जनो के
होश उड़ जाते है,
भेद भाव तो तन मन मे भर पड़ा है
वेसे वेसे लोग , पंचायत में अपना फैसला सुनाते है,
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जब से होश संभाला है
तब से खुद को संभालता देख रही है,
आखिर चाहती क्या है दुनिया,
ऐसा जो हर बार उसे ही बंदिशो का पाठ पढ़ा रही है,
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आज़ादी से तो इतना दूर घर बना दिया उसका,
की दूरी को तय करना भी बंदिश लगता है
निकले कैसे बाहर वो इससे ,
जब सरहदे अपनो की मेहरबानी है,
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फिर भी खुद ही में आज़ादी तलाशती है,
रूठे ना कोई ,
इसलिए गलतियों से डरती है
कितने ही तो बलिदान है उसके,
पर इसके लिए किसी को गिनती आती नही है,
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एक शहर से दूसरे शहर की हो गई वो,
कमज़ोर नही है वो फिर भी
वो सबके कहने पे खुद को आज़माती रह गई,
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- श्री
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"Every day is women's day"
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