About Musafir Cafe Book | By Wordz Of Shree


। कहानी के किरदार। 

चंदर, सुधा, पम्मी और आखिर में अक्षर। 

चंदर वो शख्स है जो हर कोई अपनी आम ज़िन्दगी में होता है, वो जो काम कर रहा है, उससे शायद वो खुश या दुखी नहीं है। पर उसे भी लगता है की शायद ये वो चीज़ नहीं है जो उसके लिए बनी हो, जो वो करना चाहता है।लेकिन उसे ये भी नहीं पता की उसे क्या करना चाहिए। शायद वो अपना मुसाफ़िर कैफ़े ढूंढ रहा है। 

"मुसाफ़िर कैफ़े ?"

"पहले मैं सुधा, पम्मी और अक्षर के बारे में बता दूँ थोड़ा ! फिर मुसाफिर कैफ़े।"

वैसे चंदर पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। हाँ वही जो अपने लैपटॉप स्क्रीन से खुटे की तरह बँधा रहता है। पैसे भी अच्छे कमा लेता है। वैसे सॉफ्टवेयर इंजीनियर होना कोई बुरी बात नहीं। लेकिन वो वो नहीं है, जो उसे होना चाहिए।

सुधा, लॉयर है। हर रोज़ इतनी शादियां टूटते हुए देखती है। की डाइवोर्स देख देखकर थक चुकी है। की अब शादी करने का खयाल भी मन में नही लाती। बिंदास है। सिगरेट पी लेती है। दारू कभी-कभी।

इस कहानी में सुधा का किरदार इस कहानी का धैर्य बांधे हुए है। ज़िन्दगी भर साथ रहने वाले रिश्ते को वो शादी का नाम नही देना चाहती है। मतलब चंदर से ठीक अपोजिट। और चंदर से बहुत प्यार करती है।

पम्मी!! ये शायद हर पढ़ने वाले का पसंदीदा किरदार हो सकता है। पम्मी वो शख्स है जो चंदर से आखरी उम्मीद बनकर मिलती है। आखरी उम्मीद का ये कतई मतलब नही की दोनों प्यार में थे या शादी करने वाले थे। नही। दोस्त थे।ऐसे दोस्त जो अपने हिस्से में आयी हुई हर वो चीज़ बाँट रहे थे जो हम सभी को भी बाँट लेनी चाहिए।और ये शायद प्यार शब्द से कहीं ज्यादा था। जब प्यार में आकर लोग एक जगह रुक जाते है। ये उससे कई गुना आगे बढ़ने की खोज है।

खैर, पम्मी को इस कहानी की आखिरी उम्मीद भी कह सकते है। मुझे लगता है। जब भी हमे ज़िन्दगी में पम्मी जैसे लोग मिल जाए । हमे उन्हें झट से अपने आप मे घोल लेना चाहिए। अब पम्मी सच मे केसी है? और इस कहानी से किस हद तक जुड़ी हुई है। ये तुम किताब पढ़कर ही समझ सकते हो।

अक्षर के बारे में। अक्षर वो बच्चा है जो इस कहानी को पूरा करता है।चंदर, सुधा और पम्मी को भी पूरा करता है।मुसाफ़िर कैफ़े को पूरा करता है। 

"अब मुसाफ़िर कैफ़े के बारे में?"

"ठीक,अब मुसाफ़िर कैफ़े।"

मुसाफ़िर कैफ़े हम सब की ज़िन्दगी का वो हिस्सा है जो हम कहीं न कहीं ढूंढ रहे है। हम जो बनाना चाहते है। जो करके खुश होना चाहते है। वो जिसे करते हुए हमें सच मे महसूस हो कि हम अपने आप मे कहीं न कहीं अपना अस्तित्व रखते है।और खुश भी रह सकते है।

वो मुसाफ़िर जो भटकना चाहता है नकली जवाबों से दूर। अपने आप वो हर सवाल का जवाब ढूंढ़ना चाहता है। अपने आप को मौका देना चाहता है ताकि वो गलतियां कर सके भटक सके।  भटक कर शायद वो अपना मुसाफिर कैफ़े ढूंढ ले।  खैर जब तुम किताब पढ़ लोगे तो इस कहानी का मतलब और मुसाफिर कैफ़े का मतलब अच्छे से समझ जाओगे। 

HINT: मुसाफ़िर कैफ़े नाम का एक कैफ़े है इस कहानी में, जब इस कैफ़े में हो रही हल चल के बारे में पड़ोगे तो इसके VISUAL तुम्हे एक अलग दुनिया की सेर करवाएंगे। 

I HOPE की तुम किताब ज़रूर पढोगे। और हाँ, तुम भी अपना मुसाफिर कैफ़े एक दिन ढूंढ लोगे। 

किताब के लेखक "दिव्य प्रकाश दुबे"

शुक्रिया दुबे जी , इस किताब के लिए। 

Note: This is not a review, it is only for those who want to read about Musafir Cafe and how the book is. And for those people whom I received personal messages.

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