जिनके नाम नही रखे जा सके।
जिनको केवल उस नाम से बुलाया गया जो अपना था।
खूबसूरत था।पर जिसका कोई मतलब बता पाना मुश्किल रहा हो।
इब्नेबतूती भी ऐसा ही एक शब्द है।
जो शब्दकोश में नही मिलेगा पर
अब किताब 'इब्नेबतूती' को पढ़ लेने वाले हर उस शख्स के ज़ेहन में हमेशा के लिए अपनी छाप छोड़ जाएगा।
किताब इब्नेबतूती से : माँ जो कभी एक बीस बरस की लड़की भी थी,
ये उस लड़की के नाम।
इब्नेबतूती किताब में क्या है?
कोई अगर मुझसे पूछे कि किताब में क्या खास बात है!
और ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए।
तो मैं अनगिनत वजह बता दूंगा अपनी तरफ से
'इब्नेबतूती' के किरदारों को इतने बखूबी से लिखा गया है। जैसे शालू अवस्थी जी।
हम जैसे बड़े हो जाते है। जवान हो जाते है। तो अक्सर ही ये बात कहते रहते है। हम में अब भी एक बचपना ज़िंदा है, वो कहीं न कहीं हमारी बचकानी आदतों में रहता है। ठीक वैसे ही माँओं के अंदर भी एक बीस बरस की लड़की हमेशा रहती है।जो चाहकर भी सबके सामने नही आ पाती पर वो रहती ज़रूर है। और दिव्य प्रकाश दुबे जी ने माँओं के उस रूप को सामने लाकर रख दिया है जब वो बीस बरस की थी। जो हम जैसे लोग अपनी माँ के सामने होते हुए भी उसमे उस लड़की को नही देख पाते। हमे पड़ जाती है ज़रूरत किताबों की। जैसे इब्नेबतूती जो हमे सीखा पाए। बता पाए। की जो माँ हमारी हर ज़िद्द को पूरा कर देती है। वो भी कभी न कभी ज़िद्दी रही होगी। उसे भी प्यार हुआ होगा। उसने भी खत लिखे होंगे किसीको। शायद सम्भाल भी रखे होंगे।
वैसे माँओं के बारे में लिखा बहुत गया है। पर सच मे उस लड़की के बारे में नही लिखा गया जो अब एक माँ है।
लेखक- दिव्य प्रकाश दुबे
प्रकाशन- हिंदीयुग
पेज- 160
1 Comments
Aapke website par Jo template he uska Kya name he
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