ये सब किताबें पढ़कर, फिर मैंने अक्टूबर जंक्शन की तरफ रुख किया।
इस किताब की तारीख, 10 अक्टूबर जहाँ से कहानी शुरू होती है। जहाँ से हर पढ़ने वालो को किताब के किरदारों की ही तरह इंतज़ार रहता है हर साल की दस अक्टूबर का। और मुझे भी बहुत वक़्त तक ये तारीख़ याद रहने वाली है। शायद हमेशा।मैंने पूरी किताब में हर '10 अक्टूबर' का इंतज़ार किया, कभी सुदीप के ''Make My Trip" के No.1 बनने का तो कभी चित्रा की किताब पब्लिश होने का।
और इन सब के बावजूद मैं चाहता था की सुदीप अपना रिटायरमेंट लेकर बाकी की ज़िन्दगी चित्रा और पापा के साथ लख्नऊ में बिताए।
पर मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी ! मतलब मैंने सोचा भी नहीं था।की कहानी का अंत कुछ और ही रहेगा। मैंने पूरी किताब को बहुत मज़े से पढ़ा पर आखिर के दस पन्ने मैंने कैसे पढ़े, ये तो बस किताब में लिखी बातें और मैं ही जानता हूँ। की मैं कैसे पढ़ पाया। खैर दिव्य भैया से बात हुई। मुझे जो कहना था मैंने कह दिया उनको। मेरे सवाल शायद उन्हें अटपटे नहीं लगे होंगे। क्यूंकि किताब पढ़ने वाले के मन में शायद ये सब आना जायज़ हो जाता है जब किताब ऐसे साथ छोड़ती है। और मुझसे ज्यादा ये सब सवाल दिव्य भैया के मन में भी आए होंगे। खैर सब कुछ हमारे तरीके से नहीं हो सकता। कुछ अंजाम ऐसे ही होते है। कुछ कहानिया हमे ऐसे ही याद रहती है जैसे उन्हें लिखा गया है।
शुक्रिया, दिव्य भैया
मेरा नाम अभी उस काबिल नहीं हुआ पर फिर भी
With Love, Luck and Light.
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