॥ गहरी पहचान ॥


तुम जहा रहो ,
वहां का मुझे पता देना ,
चल , पता ना सही

तो उस शहर का नाम ही बता देना ,
कभी गुज़रू मुसाफिर बनके तेरे शहर से
तो अनजान न लगु ,
किसी गली में एक नज़्म , एक शेर लिखूंगा,
पढ़ कर फिर पूछना गलियो से ,
शायद कह दे गालिया ,
की आया था मुसाफिर बनके ,
  कोई गहरी पहचान लेके ।





|| Thanks For Reading ||


Post a Comment

0 Comments